दस चेहरे अपने
कब चाहा था मैंने
एक ही चेहरा अन्दर
और एक ही चेहरा बाहर
बनाये रखा बरसों।
बदलती जा रही हूँ
पुराने वजूद को
जब ग़मगीन होती
मुस्कराहट का मुखौटा
चढ़ा लिया,
नयनो से धारा बन बहते आंसू की जगह
सख्त, तने चेहरे लिए,
साहस को समेटती
बेबाक, उन्मुक्त बोल जाती थी जहाँ
वहां मूक, बुत सा चेहरा लिए होती,
जिस सभा में अपनी
आभा लगती मद्धिम
वहां भी दीप की तरह
जलाये रखती खुद को।
अलग-अलग रिश्तो में
बदलने पड़ते चेहरे
जब कोई चेहरा नहीं होता
तब सिर्फ खुद होते
जीवन के इस रंगमंच के नीचे।
@बन्दना
बहुत सुन्दर अभिब्यक्ति|
ReplyDeleteअच्छी अभिव्यक्ति , शुभकामनाएं । पढ़िए "खबरों की दुनियाँ"
ReplyDeleteBAAS Voice का आमंत्रण :
ReplyDeleteआज हमारे देश में जिन लोगों के हाथ में सत्ता है, उनमें से अधिकतर का सच्चाई, ईमानदारी, इंसाफ आदि से दूर का भी नाता नहीं है। अधिकतर तो भ्रष्टाचार के दलदल में अन्दर तक धंसे हुए हैं, जो अपराधियों को संरक्षण भी देते हैं। इसका दु:खद दुष्परिणाम ये है कि ताकतवर लोग जब चाहें, जैसे चाहें देश के मान-सम्मान, कानून, व्यवस्था और संविधान के साथ बलात्कार करके चलते बनते हैं और किसी को सजा भी नहीं होती। जबकि बच्चे की भूख मिटाने हेतु रोटी चुराने वाली अनेक माताएँ जेलों में बन्द हैं। इन भ्रष्ट एवं अत्याचारियों के खिलाफ यदि कोई आम व्यक्ति, ईमानदार अफसर या कर्मचारी आवाज उठाना चाहे, तो उसे तरह-तरह से प्रता‹िडत एवं अपमानित किया जाता है और पूरी व्यवस्था अंधी, बहरी और गूंगी बनी रहती है। यदि ऐसा ही चलता रहा तो आज नहीं तो कल, हर आम व्यक्ति को शिकार होना ही होगा। आज आम व्यक्ति की रक्षा करने वाला कोई नहीं है! ऐसे हालात में दो रास्ते हैं-या तो हम जुल्म सहते रहें या समाज के सभी अच्छे, सच्चे, देशभक्त, ईमानदार और न्यायप्रिय लोग एकजुट हो जायें! क्योंकि लोकतन्त्र में समर्पित एवं संगठित लोगों की एकजुट ताकत के आगे झुकना सत्ता की मजबूरी है। इसी पवित्र इरादे से भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) की आजीवन सदस्यता का आमंत्रण आज आपके हाथों में है। निर्णय आपको करना है!
http://baasvoice.blogspot.com/
"बदलती जा रही हूँ
ReplyDeleteपुराने वजूद को"
आज के परिवेश में हमारी सोच को उजागर कराती सच्ची और बहुत अच्छी रचना
साहस को समेटती
ReplyDeleteबेबाक, उन्मुक्त बोल जाती थी जहाँ
वहां मूक, बुत सा चेहरा लिए होती
गहराई की सोच को परिलक्षित करती प्रभावी अभिव्यक्ति.... अच्छी प्रस्तुति...
इस नए सुंदर से चिट्ठे के साथ हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति ..
ReplyDeleteकृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...
वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया .
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी इस रचना का लिंक मंगलवार 30 -11-2010
ReplyDeleteको दिया गया है .
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
अलग -अलग रिश्तों में
ReplyDeleteबदलने पड़ते चेहरे
जब कोई चेहरा नहीं होता
तब सिर्फ खुद होते
जीवन के इस रंगमंच के नीचे
waah
जिस सभा में अपनी
ReplyDeleteआभा लगती मद्धिम
वहां भी दीप की तरह
जलाये रखती खुद को
बहुत खूब ....शुक्रिया
चलते -चलते पर आपका स्वागत है
अलग -अलग रिश्तों में
ReplyDeleteबदलने पड़ते चेहरे
जब कोई चेहरा नहीं होता
तब सिर्फ खुद होते
जीवन के इस रंगमंच के नीचे
यही तो नारी जीवन है…………………सुन्दर अभिव्यक्ति।
वहां भी जलाये रखती खुद को ...
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति !
All of us are always disturbed about the masks we wear...one sad thing about our own masks is that we start forgetting our own real face:)gr8 job.
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