कुछ है, जिससे हम हैं अनजान
सबसे पहले तो अगले क्षण से ही
अगले क्षणों का आना है निश्चित
पर वह क्या लेकर आएगा, इससे अनभिज्ञ
कभी मन को शांत समंदर में डुबो दे
कभी क्रोध के बवंडर में धकेल दे,
कभी हँसी के ठहाकों में उड़ा दे
कभी करुण क्रंदन से तन मन भिगा दे,
कभी विश्व अपना सा लगने लगे
कभी निकट सम्बन्धी भी गैर से लगने लगे.
यह रहस्य है, पर इसका जानकर कोई तो होगा
उसने अपना परिचय तो दिया, पर पर्दा भी दिया
परदे पर संसार चलता है, हम उसमे उलझतें हैं
जिस जिज्ञासू ने इस परदे को हटाया
उसने उस रहस्यकार का दर्शन पाया
जब कर्ता को जान लिया
अब हर कर्म में उसी को डाल दिया
हर क्षण उसी पर समर्पित
वह रुलाएगा तो रो लेंगे
वह हंसायेगा तो हंस लेंगे
जो कराता जायेगा, उसकी मर्जी समझ करते जायेंगे
हम उन्हें अपनाएंगे, वो हमें गले लगायेंगे
तू रहस्य बना रह, तेरी लीला भी रहस्मय
हमें तो बस तेरी लीला में रस
तेरे होने में अपार रस
जब कर्ता को जान लिया
ReplyDeleteअब हर कर्म में उसी को डाल दिया
हर क्षण उसी पर समर्पित
वह रुलाएगा तो रो लेंगे
वह हंसायेगा तो हंस लेंगे
जो कराता जायेगा, उसकी मर्जी समझ करते जायेंगे
हम उन्हें अपनाएंगे, वो हमें गले लगायेंगे
bahut hi badhiyaa
तू रहस्य बना रह, तेरी लीला भी रहस्मय
ReplyDeleteहमें तो बस तेरी लीला में रस
तेरे होने में अपार रस
सुंदर ...गहरे भाव...