जवानी की दहलीज़ पर
अभी पाँव रखा था
बचपन --
अभी अभी गुजरा था
अतः
छोड़ गया था मासूमियत की छाप
वह आया जीवन में
वही जिंदगी बन गया
सूरज की तरह केंद्र बना उसे
चक्कर लगाती दिन और रात उसके
शाम में उसके आने पर सवेरा
सुबह उसके जाने पर अँधेरा
इसी अँधेरे में तलाशा
प्रकाश
उसके आगे सारे सूरज दिखने बंद हो गए.
"लाजवाब"
ReplyDeleteekdam anoothi aur sunder.
ReplyDeleteबहुत सुंदर ....मनोभावों की प्रस्तुति......
ReplyDeletebehadd umda bhaavon se bhari prastuti.
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