Saturday, March 12, 2011

घर

ईंट- पत्थरों  से घर जोड़  न पाई 
पर जीवन  में कितने घरोँ  
में बसता  है मेरा मन

जहाँ मन ले जाता वहीँ 
एक घर  यूँ ही बन जाता

कभी अच्छी पुस्तकों  में 
कभी रसोई  के स्वादिस्ट व्यंजनों  में
कभी  दूर-पास रिश्तेदारों, मित्रों 
के प्रेम के बन्धनों  में 
कभी बच्चों की सरलता एवं उन्मुक्तता  में 
सबसे ज्यादा अपने ह्रदय की निश्चलता  में 
घर  कर जाता  मेरा मन  


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