Sunday, January 1, 2012

असमंजस

इधर या उधर 
उधर या इधर 

उधर जाते ही
 छूट जायेगा इधर

असमंजस की धारा बही
द्वन्दो की आंधी चली 

मन ने पंख फैलाये 
चलूँ या उडूं

धरती पर हूँ, इसलिए ज्ञात 
आकाश है अभी अज्ञात 

निश्चित दे रही निराशा 
अनिशिचित दिखा रही आशा 

नयनोँ में नींद नहीं 
चिंतन बनी चिंता 

राह कोई दिखाता नहीं 
बीच चोराहे पर खड़े 

सोचते सोचते थका मन 
सहते सहते शिथिल पड़ा तन 

सांसो की गति हुई मध्यम
मथते मथते आया मक्खन 

मक्खन या छाछ ?
बढ़ते वजन चाहिए, मजे में खाएं मक्खन 
कम वजन चाहिए, खूब पियें छाछ 

सघन बन यह दुनियां
 राह कोई चुने 
राहगीर रहना मजे में 
चलते रहना महत्वपूर्ण 
मंजिलें तो तय हैं ही  

  

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