सामने, दरवाजा खोलते ही
पत्ते विहीन नग्न पेड़
दिखाई पड़ जाता ।
जीवित होने के सारे सबूत
जड़ में जाकर सीमित ।
वह खड़ा है, मौसम की सजा में
हमें हौसला है, फिर हरा होगा यह पेड़.
पेड़ के पांव नहीं
इसलिए घाव भी नहीं
नहीं तो, खिलते फूलोँ के समीप जाकर
घेर लेती उदासी उसे.
पंछी का बसेरा भी नहीं
जो सारे दिन फुदकते थे
इसकी शाखाओं पर.
तमाम शाखाएँ स्पष्ट हो गयी
जो छिप जाती थी, हरे पत्तो के बीच।
पत्तो के वियोग में अजीब सा रूखापन
जब कि --
पूरी रात शबनम ने
कोमलता से भिगोया रखा था उसके तन को ।
उसकी सेवा और प्रेम
समय का इंतजार कर रही,
आएगी ज़रूर कोमल कोपलें
हरा कर जायेगा पेड़ को
ढक देगा उसे हरे परिधान में
बसेरा पुनः होगा पंछी का
इसी के डाल पर।
@बन्दना
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