Friday, November 19, 2010

मुखौटा

दस चेहरे अपने 
कब चाहा था मैंने 
एक ही चेहरा अन्दर 
और एक ही चेहरा बाहर 
बनाये रखा बरसों।

बदलती जा रही हूँ 
पुराने वजूद को 
जब ग़मगीन होती 
मुस्कराहट का मुखौटा 
चढ़ा लिया,
नयनो से धारा बन बहते आंसू की जगह 
सख्त, तने चेहरे लिए,

साहस को समेटती   
बेबाक, उन्मुक्त बोल जाती थी जहाँ 
वहां मूक, बुत सा  चेहरा लिए  होती,

जिस सभा में अपनी 
आभा लगती मद्धिम
वहां भी दीप की तरह 
जलाये रखती खुद को।

अलग-अलग रिश्तो में 
बदलने पड़ते चेहरे 
जब कोई चेहरा नहीं होता 
तब सिर्फ खुद होते 
जीवन के इस रंगमंच के नीचे। 

@बन्दना

Tuesday, November 16, 2010

खिलाडी

सुख की नाव पर
 जीवन का सफ़र
था मजे में चल रहा
तूफां आया 
लहरों से डरे 
और लहरों में ही कूद पड़े 

साहस ने लहरों से
लड़ना सिखाया 
अब लहरों से डर
लगता  नहीं
किसी मुकाम पर
मन ठहरता नहीं.

जिसे छोड़ना  था, छूटती नहीं 
जिसे थामना था, थामे न रह पाए
जीवन के खेल में 
हम सब खिलाडी 
कभी हारते तो भूल हमारी 
जीत हुई तो 
बढ़िया खिलाडी  

परिवर्तन

ठोस बनी, जमी रही 
ऊँचे पर्वतों के शिखरों पर 
बर्फ
पिघलते ही द्रव्य बनी 
फैली, बिखरी चल पड़ी 
जमी रह  न सकी एक जगह 
जा मिली जमीं से 
नदी का नाम मिला 
धरती पर लोगों को 
जीवन दान मिला 

बिटिया मेरी

कल - कल 
छल - छल 
गति है 
लय है 
बिटिया मेरी 
बहती धारा

माता - पिता
थमे - फैले 
दो पाटों में 
बने किनारा 

निर्भय - निडर 
बढती जाना 
संघर्ष तुम्हारा 
साथ हमारा 
प्रगति तेरी
विस्तार हमारा 

अपने माता पिता के 
हम भी थे धारे
आज थमे बने किनारे 
नित रूप बदलती जिंदगानी 
बस पानी की तरह
तेरी - मेरी कहानी