Wednesday, August 2, 2023

मेधा के कमरे में मैं

मेधा के कमरे में मैं, मेधा नहीं
खुले दरवाजे, सिलवट रहित बिस्तर
एक तकिये पर दूसरा तकिया आराम फ़रमाता
मेज़ पर पुस्तकें मेहमान की तरह बंद, मौन 
गिटार कवर के अंदर, बिना बजे
कॉफिन में पड़े शव के समान चिर निद्रा में
एक निर्जीव घड़ी दीवार पर
टिक-टिक चलती, कमरे में गतिमान 
परदे अब भी धूप-छाँव में खुलते बंद होते
कर्म करते हुए, लटके पड़े। 

रसोई के कुछ डिब्बे, जिन पर 
साँझ समय कोमल, नाजुक लम्बी उँगलियाँ
अपना हाथ फेरा करती, यूँ ही पड़े 
पापा रात के खाने के बाद
कुछ बातों को लेकर बेटी के साथ
पागुड़ किया करते थे 
उसके बिना अब पाचन भी गड़बड़ 
माँ की पाक विद्या को निखारने के लिए 
उचित अवसर का अभाव। 

स्थान की दूरियाँ 
उसके निकट सम्बन्धियों को 
आहिस्ते-आहिस्ते निगल लेगी
जब मिलेंगे दो अपने 
बन कर बेगानों की तरह।    

©बन्दना

Tuesday, July 11, 2023

चांद से वार्तालाप

गई थी छत पर 
वही चांद से मिलने 
उसने कहा मुझसे 
तन्हा दिख रही हो 
मैंने कहा, भला क्यूँ 
असंख्य सितारों के बीच 
अकेले तुम हो उजागर 
ढेरों लोगों की भीड़ में 
मैं भी श्रेष्ठ आत्म हूँ 

माही मुस्कराता रहा
मैं भी कहती रही 
सूरज और चांद को 
मित्र जो बनाया 
धरती पर कहीं ना 
खुद को अकेले पाया 
आसमां वालों से मित्रता में 
विरह नहीं इसमें पाई
यह कहकर 
हंसने लगी चांद को देखकर
चांद भी हंसता रहा 
फिर धीरे-धीरे खिसक पड़ा 
किसी और को हंसाने

©बन्दना, 13.09.20

Thursday, March 7, 2019

वो आएगी जब

वो आएगी जब 
संचारित होगा प्राण
खिलेगी मधुर मुस्कान।

वो आएगी जब
स्वाद जीभ पर थिरकेगा
गर्म जोशी के साथ चूल्हा जलेगा।

वो आएगी जब
घर से बाहर कदम
हंसते-हंसाते रखेंगे हम।

वो आएगी जब
रात की नींद में डालेगी खलल
सुबह को मैं भी करूंगी उसे नींद से अलग।

वो आएगी जब
पिता-बेटी के होंगे संवाद
कभी-कभी बनेंगे वही विवाद।

वो आएगी जब
जादुई तमाशा सी
सबकुछ हल्की-हल्की सी।

वो जाएगी जब
एक गहरा सन्नाटा
बस एक गहरा सन्नाटा।

बन्दना

Wednesday, February 27, 2019

मां


दिल खाली-खाली
तन्हा-तन्हा सा रहता है
माँ के जाने के बाद
मन भरा-भरा सा रहता है।

पल- पल जीवन बनकर
रगों में बहती है सदा
माँ का कोई विकल्प नहीं
वो, आज नहीं तो क्या?


Saturday, April 28, 2018

जरूर पढ़ना

मोटी मोटी पुस्तकोँ में रखे 
किसी और के शब्दोँ और एहसासो को 
खूब पढ़ लेते हैं, करते हैं  गहन चिंतन, मनन भी।

प्रेम में जब डूबना तो 
जरूर पढना किसी के --
आँखोँ से बहते आंसू का अर्थ, 
होठोँ पे मुस्कुराती कलियाँ, 
सबकुछ सहकर कुछ न कह पाने वाला मौन, 
सारी इच्छाओं की कामना रखकर, 
इच्छा रहित होने का ढोँग रचती मजबूरी को। 

Sunday, September 17, 2017

उम्र की ढ़लान

जब उम्र की हो ढ़लान,
तब जिंदगी नहीं होती आसान ।

जिम्मेदारियां जरूर पूरी हो जाती है तब तक,
चुनौतियां नयी-नयी देने लगती है दस्तक ।

सपनों से टूटने लगता है नाता,
हकीकत पंख फैलाने है लगता ।

सोचती हूं: सत्य, यथार्थ से दूर,
कुछ पल के लिए हो जाऊं मजबूर ।

उगते सूरज के उमंग-उत्साह में जागूं,
डूबते सूरज के साथ सुख-शांति में डूब जाऊं ।

जब जीवन रसमय होगा,
तब कविता में नवीनता प्रस्फुटित होगी ।

बादल बरसेगा, बिजली चमकेगी,
सोंधी मिट्टी की महक में हवा गुनगुनाएगी,
फूलों के रंगों की छटा लुभाएगी......

ऐसे में उमर फिसलेगी नहीं,
कुछ पल के लिए वहीं थमी रह जाएगी ।

©बन्दना

Wednesday, October 5, 2016

हे घर!



हे घर! अब नहीं मुझे तेरा डर, 
हर समस्या अब तेरा छोड़, तेरे ही हाल पर,  
निकल पड़ी अपनी बनी मकड़ जाल को तोड़ कर, 
जीवन की बहती धारा की दिशा मोड़ कर। 

छूटता है सीमित दायरा दरवाजे से कदम बाहर रखते ही,
मुस्कराता है असीम नीला अम्बर प्रथम स्वागत में ही। 

एक ही छत के नीचे रहते-रहते 
अपने ही कब अजनबी बन जाते हैं,
राहों में चलते अजनबी भी पता नहीं 
प्रेम भरी नजर में अपनों से नजर आते हैं। 

हर पल लगता कुछ छूट गया,
हर पल लगता कुछ नियम टूट गया। 
इस छूटने टूटने के बाद कुछ नूतन होगा,
पीड़ा होगी पर कुछ तो परिवर्तन होगा। 

थोड़ी सेवा, थोड़ा समर्पण
चार हाथों के छत के नीचे,
सूर्यास्त की लालिमा सिन्दूरी लिए 
अस्त होते मन में नया भोर तो जरूर होगा।