जब उम्र की हो ढ़लान,
तब जिंदगी नहीं होती आसान ।
जिम्मेदारियां जरूर पूरी हो जाती है तब तक,
चुनौतियां नयी-नयी देने लगती है दस्तक ।
सपनों से टूटने लगता है नाता,
हकीकत पंख फैलाने है लगता ।
सोचती हूं: सत्य, यथार्थ से दूर,
कुछ पल के लिए हो जाऊं मजबूर ।
उगते सूरज के उमंग-उत्साह में जागूं,
डूबते सूरज के साथ सुख-शांति में डूब जाऊं ।
जब जीवन रसमय होगा,
तब कविता में नवीनता प्रस्फुटित होगी ।
बादल बरसेगा, बिजली चमकेगी,
सोंधी मिट्टी की महक में हवा गुनगुनाएगी,
फूलों के रंगों की छटा लुभाएगी......
ऐसे में उमर फिसलेगी नहीं,
कुछ पल के लिए वहीं थमी रह जाएगी ।
©बन्दना
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