Thursday, December 19, 2013

चुनौती





शाश्वत सत्य है परिवर्तन, 
चुनौती भरा यह जीवन। 

आज मौसम कुछ है,
कल का कुछ और होगा,
कहीं कली मुस्कायेगी,
कहीं खिला फूल झर जायेगा। 
कभी खड़ी ऊँची फसल,
कभी मिट्टी के अन्तः में छुपा बीज। 

चुनौती है केवल स्वीकारना,
अपने आप को समय के अनुरूप ढालना। 

जो सम्बन्ध था पूर्ण विराम,
बदल बन जाता वह प्रस्नचिन्ह।  
चुनौती है मौन रहना,
जब तक हम समझते, सह रहे,
तबतक समझना बहुत बाकी 
प्रवाह जीवन धारा की जिधर,
चल पड़ेगें हम सब उधर। 
धारा के विपरीत चल नहीं सकते,
 चुनौती है साथ-साथ बहने में। 

कभी उब-डूब, कभी आराम,
जीवन में नहीं कोई विराम। 
आखिरी साँस तक जो मुस्कुराएगा,
वह जीवन चुनौती को मात दे पायेगा।  

Friday, December 6, 2013

मलाला

स्वात से उठी आवाज़
मलाला है हमारी जाबांज।

अशिक्षा के अँधेरे में
दीप बनी, रौशन करने को।

घर कि बेटियाँ अब
बाहर आएँगी, दीप बन
जीवन में प्रकाश फैलाएंगी।

मलाला की दुखद-करुण कहानी का
मन में, रह जायेगा न कोई मलाल। 

Sunday, October 13, 2013

माँ-बेटी संवाद

माँ मेरी, तु मुझे बता 
हर बेटी से होती क्या खता?

माँ होती है सेर,
बेटी होती है सदा सवा सेर. 

रखती हो नज़रों का पहरा,
भरोसा क्या मुझपर नहीं ठहरा।

खुद से भी ज्यादा भरोसा है तुमपर,
मासूम फूल से कहीं भूल से भी भूल न हो जाये-
बस इतना भर. 

जब तुम से दूर जाना पड़ेगा,
सुरक्षा तुम्हारा कहाँ मिल पायेगा?

पक्का हो जायेगा चरित्र तुम्हारा 
इधर उधर के भटकन से खुद ही सिमट जायेगा। 

सिमटकर, बंधकर जीना भी क्या जीना,
खुलकर पंख फैलाकर जीना चाहा मैंने।

आज़ादी होती है सिर्फ विचारों में 
अनुशाशन होती चरित्रों पर सदा. 

बचपन से सींचा है तुमने, 
कदम-कदम पर अंगुली पकड़ थामा। 
अब चलना होगा खुद ही आत्मविश्वास का पहन जामा।

तू चलेगी बिटिया मेरी 
समतल में समान रूप से 
दुर्गम, टेढ़े-मेढ़े, ऊँचे रास्तों पर 
चढ़ाई कर, हौसले से पहुंचेगी चोटी पर.

तुमने अपने जीवन से टपकाया जो प्यार,
नहीं माँ, नहीं जायेगा कभी बेकार।    
   
  

Tuesday, October 8, 2013

आवारगी बनाम अनुशासन

अश्कों में आवारगी मेरी, 
गीले गाल, भीगे रुमाल, 
भावों को बेपर्दा किया इसने।

नम थी उनकी भी आँखें, 
अनुशासन का था कड़ा पहरा, 
मजाल है जो गिर जाये दो बूँद।  

Thursday, February 14, 2013

गुलमोहर का गम



पीले पीले गेंदे क्या ख़ूबसूरती में खिल रहे
हा हा करते एक दूजे से मिल रहे।

गुलाबी गुलाब भी अपने रंग में 
बिना दर्पण देखे खुद पे शर्मा रहा।

गुलदाउदी तो इतनी इठला रही 
अपने ही पुष्पों का बोझ नहीं उठा पा रही।

गुलमोहर कोने में सूखा सा खड़ा 
बिन पत्ते, बिन फूल जैसे गम में हो पड़ा।

उसके तने से मेरे तन लिपट गए 
मौन भाषा में कुछ बातें हम कह गए ।

विपरीत परिस्थिति में न घबराएँगे 
मंद मंद ही सही, अन्दर ही अन्दर मुस्कुराएँगे।