Tuesday, July 11, 2023

चांद से वार्तालाप

गई थी छत पर 
वही चांद से मिलने 
उसने कहा मुझसे 
तन्हा दिख रही हो 
मैंने कहा, भला क्यूँ 
असंख्य सितारों के बीच 
अकेले तुम हो उजागर 
ढेरों लोगों की भीड़ में 
मैं भी श्रेष्ठ आत्म हूँ 

माही मुस्कराता रहा
मैं भी कहती रही 
सूरज और चांद को 
मित्र जो बनाया 
धरती पर कहीं ना 
खुद को अकेले पाया 
आसमां वालों से मित्रता में 
विरह नहीं इसमें पाई
यह कहकर 
हंसने लगी चांद को देखकर
चांद भी हंसता रहा 
फिर धीरे-धीरे खिसक पड़ा 
किसी और को हंसाने

©बन्दना, 13.09.20