Thursday, May 31, 2012

महायात्रा


संसार को संग लिए
करती हूँ कितनी यात्राएँ
सीट हो सुरक्षित 
साज-सामान भर कर
पग-पग पर जागरूक
असुविधाओं से बच कर
निकल पड़ती हूँ दूर कहीं.

पूछते हैं कई लोग
आप अकेले नहीं करती यात्रा?
मुस्करा कर कह देती
करुँगी एक महायात्रा
जिसमें कोई संग न जाएगा
जिसमें कुछ भी साथ न जाएगा
निसंग निकल पडूँगी
कोई आरक्षण नहीं
कोई सवारी नहीं
चोर-लुटेरों का पीछा नहीं
जाने की पूर्व तिथि भी नहीं

छोड़ जाउंगी अपने भारी तन को
मन पंछी बन उड़ जाएगा
एक प्रकाश निकल पड़ेगा
इस मतलबी संसार से
बेमतलबी हो जाएगा
महत्वपूर्ण, महत्वाकांक्षी
न जाने क्या-क्या पाने की
लिप्सा लिए कई जन्म भटकने के बाद
शायद अकेले, उन्मुक्त हो जाउंगी.

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