Saturday, March 19, 2011

दूसरे घर पड़ा जाना

जिस साल मेरे घर,
तुम आई
उस साल ही
मुझे दूसरे घर पड़ा जाना
इस वर्ष अब तुम्हे भी
एक घर और है जाना
बेटी! मानो एक साँस
लिया है, तो छोड़ना पड़ेगा ही.
साँस के आने जाने का
अहसास भी नहीं होता
पर बिटिया का मतलब
एक गहरा विश्वास
 जिस परिवार में जन्मी
वहां गुण, दोषों को
सर आँखों पर रखा
अब जा रही छोड़ बचपना
वहाँ सयानी बन कर रहना "रानी"
होठों पर मुस्कान की काली खिलाना
धैर्य के गहनों से लदी रहना,
ज़िन्दगी का सफ़र मस्ती में बिताना
उस घर में सभी के दिलों पर करना राज
जिसे देख हमें होगा नाज़
           
 
 
     
     
  

Saturday, March 12, 2011

पलकों पर बादलों का बसेरा

मेरी पलकों पे
क्या बादलों का 
बसेरा है ?

सुख से जब 
रोम- रोम होते 
पुलकित, सिहरन 
फैल जाती रगों में, 
अखियाँ बरबस 
बरस पड़ती  है  
बिना आहट के, 
रोके  नहीं रूकती, 
मुझसे  'वह 
मेरी है',
अहसास करा जाती.
बहने  देती  हूँ,
बहने  से सुख
 का बोझ
भारी नहीं होता.

मन कभी  दुःख
 टटोल कर
टहलने छोड़  देता
हमारे रगों पर,
टीस उठती,
टप- टप बूंदें
टपक पड़ती.
अहिस्ते-अहिस्ते
 बोझिल मन
  धुलने लगता,
बह जाते सारे विसाद
दुःख भी बहा
सुख भी बहा.

सचमुच क्या मेरी पलकों पर
है बादलों का बसेरा?

  

घर

ईंट- पत्थरों  से घर जोड़  न पाई 
पर जीवन  में कितने घरोँ  
में बसता  है मेरा मन

जहाँ मन ले जाता वहीँ 
एक घर  यूँ ही बन जाता

कभी अच्छी पुस्तकों  में 
कभी रसोई  के स्वादिस्ट व्यंजनों  में
कभी  दूर-पास रिश्तेदारों, मित्रों 
के प्रेम के बन्धनों  में 
कभी बच्चों की सरलता एवं उन्मुक्तता  में 
सबसे ज्यादा अपने ह्रदय की निश्चलता  में 
घर  कर जाता  मेरा मन