Sunday, September 17, 2017

उम्र की ढ़लान

जब उम्र की हो ढ़लान,
तब जिंदगी नहीं होती आसान ।

जिम्मेदारियां जरूर पूरी हो जाती है तब तक,
चुनौतियां नयी-नयी देने लगती है दस्तक ।

सपनों से टूटने लगता है नाता,
हकीकत पंख फैलाने है लगता ।

सोचती हूं: सत्य, यथार्थ से दूर,
कुछ पल के लिए हो जाऊं मजबूर ।

उगते सूरज के उमंग-उत्साह में जागूं,
डूबते सूरज के साथ सुख-शांति में डूब जाऊं ।

जब जीवन रसमय होगा,
तब कविता में नवीनता प्रस्फुटित होगी ।

बादल बरसेगा, बिजली चमकेगी,
सोंधी मिट्टी की महक में हवा गुनगुनाएगी,
फूलों के रंगों की छटा लुभाएगी......

ऐसे में उमर फिसलेगी नहीं,
कुछ पल के लिए वहीं थमी रह जाएगी ।

©बन्दना

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