पीले पीले गेंदे क्या ख़ूबसूरती में खिल रहे
हा हा करते एक दूजे से मिल रहे।
गुलाबी गुलाब भी अपने रंग में
बिना दर्पण देखे खुद पे शर्मा रहा।
गुलदाउदी तो इतनी इठला रही
अपने ही पुष्पों का बोझ नहीं उठा पा रही।
गुलमोहर कोने में सूखा सा खड़ा
बिन पत्ते, बिन फूल जैसे गम में हो पड़ा।
उसके तने से मेरे तन लिपट गए
मौन भाषा में कुछ बातें हम कह गए ।
विपरीत परिस्थिति में न घबराएँगे
मंद मंद ही सही, अन्दर ही अन्दर मुस्कुराएँगे।
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