कलयुग में कृष्ण पधारे
देखा, घर-घर मैं है महाभारत छिड़ा
अन्याय की युद्ध अन्याय से ही चल रही
विवेक और धैर्य का तो नाम ही मिटा
कृष्ण भी पड़ गए द्वन्द में
उनकी नीति भी डगमगाई
अन्याय पर न्याय की विजय करवाने को
वह छल भी करने को राज़ी
किन्तु अन्याय पर अन्याय में
किसकी विजय हो भारी?
दोनों पक्ष लड़ते मरते रहेंगे
कृष्ण खड़े, साक्षी भाव से देखते रहेंगे
वह खड़े हैं संसार के कुरुक्षेत्र में,
उनकी दृष्टि थी अर्जुन को ही ढूंढ़ रही
कहीं कोई अर्जुन नज़र नहीं आता
हर तरफ दुर्योधन ही था खड़ा
हाय! मैंने क्यूँ सुन्दर संसार बनाया?
माया इंसानों में डालकर
इस हरी-भरी धरती को शमशान बनाया
अब हर घर में एक अर्जुन पैदा करना होगा
उसके द्वारा ही माया के महाभारत को जीतना होगा.
-बंदना
सुन्दर सृजन , बेहतरीन भावाभिव्यक्ति.
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग" meri kavitayen" पर भी पधारें, आभारी होऊंगा .