Saturday, March 24, 2012

बदलती तस्वीर

कितने आईने बदले
पर तस्वीर बदलती न थी
एक नजरिया जो बदला
तो सारी तस्वीर बदलती नज़र आई

लेने की चाह ने  बहुत भटकाया
लालच प्यार के दो बातोँ की ही सही
ऐसे में हर रिश्ते खोटे नज़र आये
देने लगी जब प्यार की अपनी नज़र
अपनी की तो बात ही क्या
कहा जाता था जिसे गैर
वह भी अपनो से बढ़ कर नज़र आये.

भीड़ में रहने पर
भूले रहने का भय
तन्हाई मिली तो खोने का ही रोना
अब तो भीड़ में भरने की ख़ुशी
तन्हाई में खुद से मिलने का जशन
खाली होने पर जो मिला
सब में उनकी रहमत ही नज़र आई.
                                                        ~बंदना

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