Friday, September 11, 2009

मित्रता की लहर


जो मुझमें वही तुम में देखा ,
मिलने का संयोग बना,
एक और एक का योग दो नहीं
यहाँ सिर्फ 'एक' ही होता है .
जो मुझमें नहीं, वह तुम में देखा,
जहां-जहां अपूर्ण थीं, तुमसे ही तो पूर्ण हुई,
जब धरती पर थी मैं, तुम्हें आकाश में देखा,
जब खुद उरान भरने लगी, तुम्हें धरती थामे देखा,
सुख-दुःख की विशेष अवस्था में
दिल ढूंढता हर पल तुम्हें
हे मित्र! जब तुम समस्या के उलझनों में फंसे
मदद के लिए जब मेरे लम्बे हाथ बढे,
निजी एवं रक्त समबंधियों के बीच सिकुड़ते समबन्धों को
एक फैलाव मिला, एक विस्तार मिला.
ईश्वर ! ने चुनाव का मौका दिया,
एक-एक गुण वाले भी एकत्र कर लिए,
खजाना बहुमूल्य रत्नों से भर गया,
जौहरी बन जौहर दिखाना होगा,
पत्थर एवं रत्नों में फर्क समझना होगा,
मित्रता सत्यता पर स्थापित किया
प्रेम में बढ़ी और बहते रही.
बंदना

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