अगरबत्ती को आज जलते देखा
पल-पल वह जलती, राख होती जा रही थी
साथ-साथ खुशबू धुएं में उड़ा रही थी
एक तिनके पर चढाये गए थे मसाले,
मसाले के जलने तक थी उसकी आयु,
जब तक जली, महक उठा कमरा,
बुझी तो राख एवं छोटा सा तिनका बचा
जब-जब मैं भी जली,
तब-तब अहम् को लिए मिटी,
अब भी ना जाने कितने मसाले,
चिपके हैं मन पर
हौले-हौले जलेंगे सारे
हल्के-हल्के राख बन उड़ेंगे सारे
जीवन रहते चाहे मसाले भर लो जितनी,
हम इंसान की कीमत है बस इतनी।
--बंदना