Sunday, August 15, 2010

माँ





माँ! तू प्रेम की मूरत,
भली लगती तेरी सूरत.
ज्ञान की प्रथम मशाल हो,
ईश्वर का दिया तोफ़ा बेमिसाल हो.
करूणा बन बहती हो जीवन में,
जीवन के कर्म युद्ध में तुम,
बनती हमारी ढाल हो.
बदहाल एवं बेबस बच्चे को,
तेरी आँचल से मिलती छाँव है.
भूले भटके को राह दिखलाती
क्षमा करना तुम्हारा श्रृंगार है.
नास्तिक का भी मस्तक,
तेरे आगे झुकता है,



तुम अद्भुत! अनूठी उपहार हो.

तुम्हारे पेट के निकट जब,
लेट जाते, जन्नत की खुशियाँ,
इर्द-गिर्द लोटने लगती है.
समय की चाल का पता नहीं चलता
ज्यों धरती माँ घूमती रहती है,
हमें आभास भी नहीं होता.
शब्द तुम्हारे अपशब्द हो सकते,
पर भाव सदा भला ही होगा.
दर्द घोलते माँ के जीवन में,
वह कितना बेदर्दी होगा.
खुद घुट-घुटकर भी घोटती
'जीवन घूंटी' औलादों के लिए.

-बंदना

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