Sunday, October 13, 2013

माँ-बेटी संवाद

माँ मेरी, तु मुझे बता 
हर बेटी से होती क्या खता?

माँ होती है सेर,
बेटी होती है सदा सवा सेर. 

रखती हो नज़रों का पहरा,
भरोसा क्या मुझपर नहीं ठहरा।

खुद से भी ज्यादा भरोसा है तुमपर,
मासूम फूल से कहीं भूल से भी भूल न हो जाये-
बस इतना भर. 

जब तुम से दूर जाना पड़ेगा,
सुरक्षा तुम्हारा कहाँ मिल पायेगा?

पक्का हो जायेगा चरित्र तुम्हारा 
इधर उधर के भटकन से खुद ही सिमट जायेगा। 

सिमटकर, बंधकर जीना भी क्या जीना,
खुलकर पंख फैलाकर जीना चाहा मैंने।

आज़ादी होती है सिर्फ विचारों में 
अनुशाशन होती चरित्रों पर सदा. 

बचपन से सींचा है तुमने, 
कदम-कदम पर अंगुली पकड़ थामा। 
अब चलना होगा खुद ही आत्मविश्वास का पहन जामा।

तू चलेगी बिटिया मेरी 
समतल में समान रूप से 
दुर्गम, टेढ़े-मेढ़े, ऊँचे रास्तों पर 
चढ़ाई कर, हौसले से पहुंचेगी चोटी पर.

तुमने अपने जीवन से टपकाया जो प्यार,
नहीं माँ, नहीं जायेगा कभी बेकार।    
   
  

Tuesday, October 8, 2013

आवारगी बनाम अनुशासन

अश्कों में आवारगी मेरी, 
गीले गाल, भीगे रुमाल, 
भावों को बेपर्दा किया इसने।

नम थी उनकी भी आँखें, 
अनुशासन का था कड़ा पहरा, 
मजाल है जो गिर जाये दो बूँद।